जॉन कॉनवे का गेम ऑफ लाइफ, एक क्लासिक सेल्युलर ऑटोमेटन, की कल्पना 1970 में की गई थी। यह गेम एक अनंत, द्वि-आयामी ग्रिड पर चलता है जहां प्रत्येक कोशिका दो अवस्थाओं में से एक में मौजूद होती है: जीवित या मृत। खेल का विकास, या पीढ़ी, अलग-अलग चरणों में होती है, प्रत्येक कोशिका का भाग्य उसके Eight पड़ोसी कोशिकाओं (क्षैतिज, लंबवत और तिरछे आसन्न) द्वारा निर्धारित होता है।
लाइव की प्रारंभिक व्यवस्था और Dead Cells पहली पीढ़ी बनाती है। प्रत्येक कोशिका पर निम्नलिखित नियम एक साथ लागू करने से अगली पीढ़ियों का निर्माण होता है:
- उत्तरजीविता: एक जीवित कोशिका जीवित रहती है यदि उसके ठीक दो या तीन जीवित पड़ोसी हों।
- जन्म: एक मृत कोशिका जीवित हो जाती है यदि उसके ठीक तीन जीवित पड़ोसी हों।
कॉनवे ने इस विशिष्ट सेट पर निर्णय लेने से पहले कई नियम विविधताओं के साथ प्रयोग किया। अन्य विविधताएँ अक्सर जनसंख्या विलुप्ति या अनियंत्रित विस्तार का कारण बनती हैं। चुने गए नियम इन चरम सीमाओं के बीच एक महत्वपूर्ण बिंदु का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप जटिल और आकर्षक पैटर्न बनते हैं जिसके लिए जीवन का खेल प्रसिद्ध है। विस्तार और क्षय के बीच यह नाजुक संतुलन गतिशील व्यवहार की एक समृद्ध टेपेस्ट्री बनाता है।
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